Thursday, November 5, 2009

क्या करेंगे हम


हसरत तुम्हारे दिल की कभी जान सका
का़तिल तुम्हीं मेरे हो ये दिल मान सका
ज़ख्मों को अब और हवा दे मेरे रकीब
अफ़सोस है कि तुझको मैं पहचान सका


क्या करेंगे हम

जज़्बात थम गए हैं भला क्या करेंगे हम
शिकवा भी ज़िन्दगी से भला क्या करेंगे हम

खाकर क़सम गए हैं वह फिर लौट आयेंगे
ऐसे में अपने दिल को जला क्या करेंगे हम

ख़ुद के ही मामलात ने तनहा जो कर दिया
आया है ज़िन्दगी में ख़ला क्या करेंगे हम

आने की उनकी मुझको कुछ उम्मीद न रही
ऐसे में फिर से शम्मा जला क्या करेंगे हम

जिसने वतन की आबरू का सौदा कर दिया
ग़द्दार आदमी का भला क्या करेंगे हम

ठोकर बहुत मिलीं मगर साहिल नहीं मिला
दुनिया ने हर कदम पे छला क्या करेंगे हम

साहिल इटावी

4 comments:

  1. Dear Sahil,
    realy your ghazals are very high lavel. I hope that the others collection will be marvelous.

    ReplyDelete
  2. aap ke ander itni cobliyat hai ki mai apne aap ko aap ka dost bhi kaise kahe kaha aap aur kaha hum

    ReplyDelete
  3. bahut khoob
    tamnna hai ki aap jaisa shayar mein bhi ban jaaon magar aap se muqaabla bhala kya karenge hum.

    ReplyDelete