Tuesday, December 15, 2009

दर्द - ए - दिल





दर्द - ए - dil



"  कश्तियों को न रोको अब इन्हें जाने भी दो
ये समंदर की मोहब्बत के लिए बेचैन  हैं  "

ग़ज़ल


अपने ख़याल दिल से निकलने तो दीजिये 
बेताब   परिंदों   को   चहकने   तो   दीजिये


अरसे से आँख नम है मेरी उनकी याद में
ये   अश्क   मेरे   आज   छलकने तो दीजिये 


दीदार की तलब है तो नज़रें जमा के रख
रुख   से   ज़रा   नक़ाब   सरकने तो दीजिये 


तक़सीम करने वालों को मिल जायेगा सिला 
ये   आग  दिल में   और  दहकने   तो दीजिये


मेरा   वतन   गुलिस्ताँ  है   मत छेड़ तू इसे
लिल्लाह  इसे  यूँ   ही   महकने तो दीजिये


रुक जायेंगे क़दम तेरे साहिल पे आके खुद
ठहरे   हुए  क़दम   को   बहकने   तो दीजिये
- साहिल 

3 comments:

  1. Kya Baat hai Saahil Ji... Hum to aap ke fan ho gaye.

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  2. कोई पूछता है हमसे, हाल चाल कैसा है,
    कैसी गुज़र रही है ज़िन्दगी.
    तो बस इतना कह देते हैं,
    ज़िन्दगी में गम है, गम में मजा है,
    और मजे में हम हैं. . .
    अनिल सच्चर
    लखनऊ
    94151 09696
    98396 09696

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  3. वाह वाह , बहुत खूब , ऐसे ही मासूमियत से लिकते रहिये

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