Tuesday, October 27, 2009

डर लगता है


अपने दिल का हाल सुनाऊं डर लगता है
कहीं न मैं शायर हो जाऊँ डर लगता है

इक छोटी सी हसरत लेकर भटका फिरता हूँ
दीवाना अब न बन जाऊं डर लगता है

ऊँचे ऊँचे ख्वाबों को दिल में बसाये बैठा हूँ
कहीं न मैं ठोकर खा जाऊं डर लगता है

उनके जलवों से ये महफ़िल रंग बिरंगी है
संजीदा इक गीत सुनाऊं डर लगता है

गुमनामी के आंसू पीकर रह जाऊँगा लेकिन
सब को अपने ज़ख्म दिखाऊं डर लगता है

क्या मैं सुनाऊं उनको अपना हालेदिल साहिल
कहीं न मैं रुसवा हो जाऊं डर लगता है

साहिल इटावी

3 comments:

  1. बहुत खूब अच्छा लगा पढ़कर

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  2. Dear Sahil,
    collection is realy very good.

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  3. keep it up becouse, "dar ke aage hi jeet hai"

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