Tuesday, October 27, 2009

डर लगता है


अपने दिल का हाल सुनाऊं डर लगता है
कहीं न मैं शायर हो जाऊँ डर लगता है

इक छोटी सी हसरत लेकर भटका फिरता हूँ
दीवाना अब न बन जाऊं डर लगता है

ऊँचे ऊँचे ख्वाबों को दिल में बसाये बैठा हूँ
कहीं न मैं ठोकर खा जाऊं डर लगता है

उनके जलवों से ये महफ़िल रंग बिरंगी है
संजीदा इक गीत सुनाऊं डर लगता है

गुमनामी के आंसू पीकर रह जाऊँगा लेकिन
सब को अपने ज़ख्म दिखाऊं डर लगता है

क्या मैं सुनाऊं उनको अपना हालेदिल साहिल
कहीं न मैं रुसवा हो जाऊं डर लगता है

साहिल इटावी

Monday, October 26, 2009

बस मुस्करा दीजिए


दुश्मनी दोस्तों की भुला दीजिये
पैदा  ऐसा   कोई  होसला  कीजिये
मेरे मौला रहे अमन इस मुल्क में
जज़्बा  ऐसा सभी को अता कीजिये

ग़ज़ल

परदए दरमियाँ को हटा दीजिए

प्यार क्या है ये अब तो बता दीजिए



जब भी राहों में हो आमना सामना

अर्ज़ इतनी है बस मुस्करा दीजिए



मैंने गर्दिश में उनको सहारा दिया

क्या है मेरी ख़ता ये बता दीजिए



जो भी तक़सीम कर दे हमें मुल्क में

गर हो दीवार ऐसी गिरा दीजिए



उंगलियाँ जब ज़माने की उठने लगें

ऐसी हो कोई हसरत दबा दीजिए



ज़ुल्म करना गुनाह है ये बिल्कुल सही

ज़ुल्म सहकर न इसको हवा दीजिए



खींच लें मुझको साहिल पे आके कोई

ऐसी लहरों का मुझको पता दीजिए




साहिल इटावी