किसी को यूँ डराना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम्हारा मुस्कुराना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
ज़हन में कुछ ज़बाँ पे कुछ अजब दिल की रवादारी
तुम्हारा मुँह चुराना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
जिन्होंने मुल्क को आज़ादी की रह पर चलाया है
निशाँ उनके मिटाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
भरम पाले हैं शायद कोई उनके काम आ जाए
भरम उनका मिटाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
फ़सल दहकाँ की अपने नाम कर जो घर में बैठे हैं
वो उनका आशियाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
निवाला जिसमें लिपटा हो किसी का खून ए साहिल
वो ऐसा आब-ओ-दाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
साहिल इटावी