Thursday, December 9, 2010

उम्मीद


जज़्बात बेख़ुदी की  तरफ क्या करूँ नज़र
अपनी ही ज़िन्दगी से हुआ जब  मैं  बेखबर 
बंदिश  कभी न थी, न अब भी है साहिल
लम्बा है क्या हुआ है करना है तय सफ़र

1 comment:

  1. its very good ...
    aapki ye lines logo ke liye hausla ban sakti hai

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